Home > साहित्य > घर की जरुरत
साहित्यघर की जरुरत

- अनिल विभाकर
जमीन में जिनकी जड़ें होती हैं
वे जमीन से अलग नहीं होते
पंछी चाहे जितना भी आसमान में उड़े
दाना तो उसे जमीन पर ही चुगना होगा
आसमान में दाना नहीं होता
दाना के बगैर नहीं रह सकता कोई
घर के बगैर भी नहीं
जिन्हें घर की जरुरत होती है
वे जमीन पर आते हैं/जमीन पर रहते हैं
जमीन से अलग नहीं हैं
पेड़, पहाड़, नदी और समुद्र
जो जमीन पर नहीं आता
वह जमीन का नहीं होता
जो जमीन का नहीं होता
वह जमीन का नहीं है
जो जमीन पर नहीं है, उसका क्या भरोसा
वह है भी या नहीं, कौन जानता
जो जमीन से अलग हो जाता है
वह कहीं नहीं होता
आसमान में भी नहीं
(अनिल विभाकर हिंदी के वरिष्ठ और चर्चित कवि हैं। प्रखर अभिव्यक्ति के लिए सुख्यात कवि विभाकर के दो कविता संग्रह 'शिखर में आग' और 'सच कहने के लिए' काफी चर्चित रहे हैं। कविताओं में बेबाक अभिव्यक्ति उनकी विशिष्टता है। देश की लगभग सभी महत्वपूर्ण पत्र-पत्रिकाओं में उनकी कविताएं, सामयिक लेख और समीक्षाएं छपती रही हैं। विभाकर हिंदी के वरिष्ठ पत्रकार भी हैं। उन्होंने हिंदी दैनिक 'आज' और 'हिन्दुस्तान' में कई वर्षों तक वरिष्ठ पदों पर कार्य किया। वे 'जनसत्ता' के रायपुर संस्करण और 'नवभारत' के भुवनेश्वर संस्करण के स्थानीय संपादक भी रहे हैं।)
LEAVE A REPLY